शिव ही सत्य है


कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, यह पावन पर्व भगवान शिवजी को समर्पित है। साल की इस सबसे अंधेरी रात को शिव की कृपा का उत्सव मनाया जाता है। शिव को आदि गुरु या प्रथम गुरु माना जाता है, और उन्हीं से यौगिक परंपरा की शुरुआत हुई थी। इस रात को ग्रहों की स्थिति ऐसी होती है कि ये मानव शरीर में ऊर्जा को शक्तिशाली ढंग से ऊपर की ओर ले जाती है। 

शिवरात्रि के दिन ही माता पार्वती तथा भगवान शिव का एक दूसरे के साथ विवाह हुआ था।

धार्मिक मान्यता है कि फाल्गुन कृष्ण की चतुर्दशी तिथि की रात्रि को भगवान शिव का विवाह माता पार्वती के साथ संपन्न हुआ था। पंचांग के अनुसार जिस दिन फाल्गुन माह की मध्य रात्रि यानी निशीथ काल में होती है उस दिन को ही महाशिवरात्रि माना जाता है। कहा जाता है कि महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर व्रत रखने वाले को मोक्ष की प्राप्ति होती है। 

महाशिवरात्रि की एक कहानी- समुद्र मंथन के दौरान सभी देवता गण अमृत पान के लिए तत्पर थे, परन्तु अमृत के साथ समुद्र से विष की भी उत्पत्ति हुई विष था हलाहल। हलाहल विष में ब्रह्मांड को नष्ट करने की क्षमता थी और इसलिए केवल भगवान शिव ही इसका पान कर सकते थे। भगवान शिव ने हलाहल नामक विष को अपने कंठ में रख लिया था। विष इतना शक्तिशाली था कि भगवान शिव अत्यधिक दर्द से पीड़ित हो उठे थे और उनका गला संपूर्णतः  नीला पड़ गया था। इस कारण से भगवान शिव को 'नीलकंठ' के नाम से भी जाना जाता है। विषपान के बाद, उपचार के लिए, चिकित्सकों ने देवताओं को भगवान शिव को रात भर जागते रहने की सलाह दी। इस प्रकार, सभी देवताओं ने भगवान शिव के चिंतन में एक सतर्कता रखी। शिव का आनंद लेने और जागने के लिए, देवताओं ने अलग-अलग नृत्य और संगीत बजाए। जैसे सुबह हुई, उनकी भक्ति से प्रसन्न भगवान शिव ने उन सभी को आशीर्वाद दिया। शिवरात्रि इस घटना का उत्सव है, जिससे शिव ने संसार को बचाया। तब से इस दिन, भक्त उपवास करते है और रात भर शिव का गान करके उनकी भक्ति में डूबे रहते है। 

आधुनिक विज्ञान भी यह मानता है हर चीज़ की उत्पत्ति शून्य से होती है और वह शून्य में ही समाहित हो जाती है।

जो नहीं है वही शिव है। 

शिव अर्थात जो शून्य है 

शिव अर्थात जो शुभ है

शिव अर्थात जो सूंदर है 

शिव अर्थात जो सत्य है

 By Priya Agarwal

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